इंद्र कौन हैं
इंद्र कश्यप ऋषि के पुत्र और देवताओं के राजा हैं। वैसे तो इंद्र एक पदवी का नाम है और इंद्र के सिंहासन में बहुत सारे लोग विराजमान हो चुके हैं जिसमे सुर, असुर और ऋषि तीनो सम्मिलित हैं। इंद्रा को बहुत सारे नामो से जाना जाता है जैसे की सुरेंद्र, देवेंद्र, सुरेश, देवेश, सुरपति, वासव, पुरंदर इत्यादि।
देवराज को उनके छल के बारे में भी जाना जाता है। जब भी दुनिया में कोई सुर, असुर अथवा ऋषि तपस्या में लीन होते है तो इनका सिंहासन संकट में आ जाता है इन्हे ऐसा लगता है कि त्रिदेव(ब्रह्मा, विष्णु और महेश) से ऐसा वरदान न मांग ले की इनका सिंहासन संकट में आ जाए। इंद्र ही देवताओं के अधिपति हैं और वही बादलो के देवता भी हैं । जब वो बादलो को आदेश देते हैं तभी वर्षा होती है ।
देवराज इन्द्र का अस्त्र वज्र है और उनकी सवारी है ऐरावत(जो समुद्र मंथन के समय 14 रत्नो में से एक है ) हाथी।
इंद्र की पूजा(Indra ki pooja) न होने का कारण
इस बारे में 2 कहानिया प्रचलित हैं
पहली तो ये है की जब श्रीकृष्ण भगवान का जन्म हुआ उसके पहले उत्तर भारत में इंद्रोत्सव नामक बहुत बड़ा त्यौहार मनाया जाता था जिसमे इंद्र की पूजा बहुत ही विधि – विधान से की जाती थी। उसे श्री कृष्ण भगवान ने बंद करवा दी और समस्त ब्रजवासियो से आग्रह किया कि उन लोगो की बिलकुल भी पूजा नहीं होनी चाहिए जो न ईश्वर हैं और न हि ईश्वर -तुल्य। देवता ईश्वर नहीं होते हैं वो ईश्वर (भगवान) के प्रतिनिधि होते हैं। पूजा हमेशा उन लोगो की होनी चाहिए जो हमें कुछ प्रदान करता है जैसे गाय हमें दूध देती हैं हमारा पोषण करती हैं पहाड़ हमें हरी घास प्रदान करते हैं।
इसी प्रकार भगवान् श्री कृष्ण इंद्रोत्सव बंद करवाकर होली, रंगपंचमी और गोपोत्स्व जैसे त्योहार मनाने का प्रचलन शुरू किया। उस समय गोवर्धन पर्वत ब्रज में बहुत ही बड़ा पर्वत मन जाता था जो हरी घास, कंद – मूल और शीतल जल प्रदान करता था। भगवन कृष्ण ने ये निर्णय लिया की इस वर्ष से इंद्रोत्सव की जगह गोपोत्सव मनाया जायेगा
इंद्र का क्रोध
जब ये बात इंद्र को पता चली तो इंद्र बहुत ज्यादा क्रोधित हो गए और उन्होंने बादलो को ये आदेश दिया की ब्रज में जाकर ऐसी घनघोर वर्षा करो की ब्रजवासी मुझसे विनती करने के लिये मजबूर हो जाएँ। ब्रज में कई दिनों तक घनघोर वर्षा होती रही जिससे बृजवासी बहुत ज्यादा चिंतित हो गए और सभी लोग श्री कृष्ण के पास आये और उनसे रक्षा करने के लिए कहा।
ब्रजवासियो पर विपत्ति जानकर श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी ऊँगली पर उठा लिया जिससे सारे ब्रजवासियों के ऊपर बारिश और गर्जना का कोई असर नहीं हुआ। ये सब देखकर इंद्र का अभिमान चूर-चूर हो गया। उसके बाद इंद्र का श्री कृष्ण के साथ युद्ध भी हुआ जिसमे देवराज इन्द्र हार गए और तभी से इंद्र की पूजा नहीं होती है।
गौतम ऋषि का श्राप
इसी कहानी का एक रूप और भी है वो है गौतम ऋषि का श्राप एक बार देवराज इंद्र भू लोक में विचरण कर रहे थे तो उन्होंने महर्षि गौतम की पत्नी अहिल्या को देखा और देखते ही देखते मोहित हो गए।
धरती से स्वर्ग लोक लौटने पर भी इंद्र का ध्यान माता अहिल्या के ऊपर ही अटका रहा और उनके मस्तिष्क में तरह-तरह के ख्याल जाग्रत हो रहे थे .
एक बार की बात है सायंकाल का समय था और गौतम ऋषि ध्यान – योग करने नित्य कर्म की तरह जंगल चले जाते हैं और फिर वो स्नान करके वापस आते हैं। जब गौतम ऋषि अपने नित्य संध्या के लिए चले गए तो देवराज इंद्र के मन में कुटिल विचार आया और वो गौतम ऋषि का वेश बनाकर के अहिल्या के कुटिया आ पहुंचे। उनका ये छद्म वेश अहिल्या समझ नहीं पायी और उनकी सेवा करने लगी। देवराज इंद्र सेवा में इतने मगन थे की उन्हें समय का ज्ञान ही नहीं रहा और गौतम ऋषि अपनी कुटिया में आ गए और बहुरूपिये का वेश देखकर अत्यंत क्रोधित हो गए।
इंद्र को श्राप
ये देखने के बाद इंद्र असली स्वरुप में आये तो गौतम ऋषि ने उन्हें श्राप दे दिया की जिस स्त्री योनि के ऊपर तू इतना आसक्त रहता है उसी प्रकार तेरे शरीर में 1000 योनिया निकल जाएँ और देवताओं के राजा होने के बावजूद तुम्हारी पूजा अन्य देवता के तुलना में न के बराबर हो। ये सुनकर इंद्र घबरा गए और उन्होंने गौतम ऋषि से क्षमा -याचना मांगी जिससे ऋषि को दया आ गयी और उन्होंने योनियों को आँखों में परिवर्तित कर दिया। इसी श्राप के कारण इंद्र के शरीर में १००० आँखे हैं। यही कारण है कि इंद्र की पूजा कहीं नहीं होती है।
अहिल्या को श्राप
इसी कारण से माता अहिल्या को भी श्राप मिला और वो एक पत्थर बन गयीं और उनकी मुक्ति का मार्ग श्री राम के श्रीचरण बताये गए। जब त्रेतायुग में श्रीराम विश्वामित्र के साथ जंगल में आये तभी उन्होंने अहिल्या का उद्धार किया।
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