रावण के पूर्वजन्म की कहानी (Purvajanm story of Ravan)
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रावण पिछले जन्म में कौन था? रावण का पहला अवतार था या फिर इसके पहले और कोई अवतार हुआ था ? क्या वह देवता था गन्धर्व था या फिर नर आईये जानेंगे इस लेख में ।
जय और विजय कौन थे
आदिकाल की बात है वैकुण्ठ (विष्णु लोक) में दो द्वारपाल थे जिनका नाम था जय और विजय। वह दोनों द्वारपाल वैकुण्ठ में आने जाने वाले लोगों का ध्यान रखते थे और विष्णु भगवान् की आज्ञा के बिना किसी को अंदर प्रवेश नहीं देते थे ।
सनक सनन्दन ऋषि का आगमन
एक बार कुछ ब्रह्मऋषि सनक और सनन्दन विष्णु भगवान् से मिलने के लिए वैकुण्ठ पधारे उस समय विष्णु भगवान् विश्राम कर रहे थे। जब ब्रह्मऋषि विष्णुलोक के द्वार में पहुंचे तो द्वारपाल ने ऋषियों से कहा की अभी नारायण विश्राम कर रहे हैं तो उन्हें अभी परेशान करना उचित नहीं होगा ।ब्रह्मऋषि नहीं माने और वो अंदर जाने के लिए और विष्णु भगवान् से मिलने के लिए बहुत आतुर थे। जब द्वारपालों ने उन्हें नहीं जाने दिया तो ब्रह्मऋषि ने क्रोध में आकर के जय और विजय को श्राप दे डाला ।
श्राप क्या था ?
ऋषियों ने द्वारपालों को श्राप दिया कि तुम अगले जन्मो में राक्षस बनोगे। यह सुनकर जय और विजय बहुत ज्यादा भयभीत हो गए और ब्रह्मऋषियों से क्षमा याचना की और कहा की यह तो हम अपने धर्म का पालन कर रहे थे । जब ऋषि नहीं माने तब वो दोनों भाई अपनी गुहार लेकर विष्णु जी के पास गए । विष्णु जी ने सनक और सनन्दन ऋषि को सादर प्रणाम किया और उनसे इस श्राप को कम करने के लिए विनती की।
तब ऋषि ने उन्हें बताया की ये श्राप आपके लिए आजीवन नहीं रहेगा इसकी अवधि हम 3 जन्म की करते हैं , आपको 3 जन्म तक राक्षस योनि में जन्म लेना पड़ेगा और शर्त ये है कि आपका वध या तो विष्णु से या विष्णु के किसी अवतार से होगा तभी तुम्हारा उद्धार हो पायेगा। तीन जन्म मृत्यु लोक में पूरा करने के बाद तुम इस स्थान पर वापस आ जाओगे।
जय और विजय का पहला जन्म
जय और विजय का पहला जन्म हिरण्याक्ष और हिरणकश्यप के रूप में हुआ।
हिरणायक्ष बहुत ही ज्यादा क्रूर और पराक्रमी था। एक बार उसने ब्रह्मलोक जाकर सारे वेद चुरा लिए थे और वो ऋषि मुनि और मानवो से इतना ज्यादा घृणा करता था कि एक बार उस दानव ने पृथ्वी को सागर में छिपा दिया था । तब पूरा ब्रह्माण्ड त्राहि माम् त्राहि माम करने लगा। तब विष्णु जी ने वराह रूप धारण करके हिरण्याक्ष का वध किया और पृथ्वी को अमंगल होने से बचा लिया ।
हिरणकश्यप को जब यह मालुम चला कि विष्णु ने उसके भाई का वध कर दिया है तब उसने विष्णु भगवान् से बदला लेने के लिए ब्रह्मा जी का बहुत तप किया और बहुत से वर प्राप्त किये जिसमे से एक वर था कि
न मेरी मृत्यु आकाश में हो ना पाताल में , न दिन में हो न रात में , न अंदर मरुँ न बाहर मरू , न मै न नर से मरू न देवताओं से
ब्रह्मा जी ने ये आशीर्वाद दे दिया। तब हिरणकश्यप को लगा कि मै अमर हो गया हूँ और मुझे भगवान् मानकर सब लोग मेरी पूजा करें। हिरणकश्यप को सभी लोग पूजने लगे जो नहीं पूजते थे उनका वह वध करवा देता था । सारी प्रजा उससे त्रस्त हो चुकी थी।
प्रह्लाद की कहानी
कुछ समय बाद हिरणकश्यप के घर प्रह्लाद का जन्म हुआ। वो बालक बहुत बुद्धिमान और विष्णुभक्त था ।
जब यह बात हिरणकश्यप को मालुम चली कि उसका स्वयं का पुत्र ही विष्णु भक्त है जिससे वो सदा ही वैर रखता आया है, तब हिरणकश्यप ने प्रहलाद को मारने के लिए बहुत यत्न किये लेकिन सभी असफल रहे। जब भी हिरणकश्यप प्रह्लाद से पूछता कि तेरा विष्णु कहाँ है? तब प्रहलाद बहुत ही शांत स्वभाव से उत्तर देते कि मेरा भगवान् सर्वत्र है ।
कहते है हर एक प्राणी का अंतिम समय आता है । जो प्राणी अधर्म से चलता है उसकी दुर्गति बहुत भयानक होती है । एक दिन वही सवाल फिर हिरणकश्यप ने प्रहलाद से पूछा कि तेरा भगवान् कहाँ है ? क्या इस खम्बे में है ? प्रह्लाद ने कहा कि हाँ इस खम्बे में उसका भगवान् है और खम्बे से जाकर लिपट गए । जब हिरणकश्यप ने प्रह्लाद के ऊपर प्रहार किया तब विष्णु भगवान् ने नृसिंह अवतार लेकर के हिरणकश्यप का शाम के समय बीच दहलीज में अपने नाखूनों से उसका वध कर दिया ।
जय और विजय का दूसरा जन्म
जय और विजय का दूसरा जन्म रावण और कुम्भकर्ण के रूप में त्रेतायुग में राक्षस कुल में हुआ ।
रावण के बारे में तो हम सभी जानते है की वो बहुत ही प्रतापी राजा था उसने बहुत ही ज्यादा तपश्या करके शूलपाणि शंकर और ब्रह्मदेव से बहुत ही ज्यादा वरदान प्राप्त कर रखे थे । उसे ऐसे शस्त्रों का भी ज्ञान था जो देवताओं को भी दुर्लभ था इस वजह से देवता उससे पराजित हो जाते थे । राक्षसराज रावण को इतनी शक्ति मिलने के बाद वो अहंकार में चूर हो गया और उन शक्तियों का गलत प्रयोग करने लगा । ऋषियों और मुनियों को त्रास देने लगा जिससे तीनो लोक भयभीत हो गए ।
उसी प्रकार उसका अनुज भ्राता कुम्भकरण अपार शक्तिवान था । जिस भी युद्ध में ये दोनों भाई साथ रहते थे उस में इन्हे परास्त करने की क्षमता किसी में भी नहीं थी । जब रावण का अत्याचार बहुत ज्यादा बढ़ गया तब भगवान विष्णु ने रामावतार लेकर रावण और कुम्भकरण का विनाश किया । इसी तरह इनका दूसरा जन्म भी राक्षस कुल में समाप्त हुआ
जय और विजय का तीसरा जन्म
जय और विजय का तीसरा जन्म द्वापरयुग में शिशुपाल और दन्तवक्र के रूप में जन्म हुआ
शिशुपाल वासुदेव की बहन का पुत्र था इस प्रकार श्री कृष्ण और शिशुपाल भाई भाई थे । शिशुपाल जन्म लेते ही बहुत विचित्र दिखता था। उसके तीन आँख और चार हाथ थे। अपने पुत्र को ऐसा देखकर शिशुपाल के माता – पिता घबरा गए और उसे त्याग करने का सोचने लगे तभी आकाश से आकाशवाणी हुयी की इस बच्चे का त्याग न करे जब सही समय आएगा तो इसके अतिरिक्त आँख और हाथ स्वयं गायब हो जायेंगे और इसके साथ यह भी आकाशवाणी हुयी की जो भी मनुष्य इसे अपने गोद में उठाएगा वही इसका वध करेगा ।
जब कृष्ण भगवान् ने शिशुपाल को उठाया तो उसकी आँख और हाथ गायब हो गए । शिशुपाल की माता को लगा कि आकाशवाणी के अनुसार शिशुपाल का वध स्वयं उसका भाई करेगा । हम सभी यह जानते है कि युधिस्टिर कि भरी सभा में जब शिशुपाल ने कृष्ण का अपमान किया था तब श्री कृष्ण ने अपने सुदर्शन से उसका सर धड़ से अलग कर दिया था ।
दन्तवक्र भी द्वापरयुग में जन्म लिया वो शिशुपाल का बहुत ही अच्छा मित्र था । जब भी जरासंध और श्रीकृष्ण का युद्ध हुआ है दन्तवक्र हमेशा जरासंध के साथ ही रहता था और युद्ध में पराजित हो जाता था । जब शिशुपाल का वध हुआ तो उसे यह उसको मालूम हो गया था कि कभी न कभी कृष्ण उसका भी वध कर देंगे तो वो अकेले ही द्वारिका पहुंच गया श्रीकृष्ण से युद्ध करने । उस युद्ध में श्री कृष्ण ने अपनी गदा से उसके वक्षस्थल में प्रहार किया और वो चारो खाने चित्त हो गया और उसकी मौत हो गयी ।
इस प्रकार जय और विजय को मिला हुआ श्राप पूर्ण हुआ और वो फिर से वैकुण्ठ धाम को चले गए ।
रावण के पूर्वजन्म के बारे में एक कहानी और भी प्रचलित है
कुछ लोग यह भी मानते हैं की रावण पूर्वजन्म में एक पराक्रमी राजा था ।
कैकेयी देश के राजा थे सत्यकेतु। उनके दो पुत्र थे एक का नाम था भानुप्रताप और दूसरे का नाम अरिमर्दन। राजा सत्यकेतु के गुजर जाने के बाद उनका बड़ा पुत्र भानुप्रताप राज्य का अगला उत्तराधिकारी बनाया गया । भानुप्रताप बहुत ही बुद्धिमान और तेजस्वी राजा था । उसकी दूरदृष्टि बहुत ही तेज थी ।
उसने बहुत सारे युद्ध किये और उन्हें जीतकर के अपने राज्य के सीमा को आगे बढ़ाया ।
एक बार राजा भानुप्रताप विंध्याचल के पहाड़ी इलाको में शिकार के लिए निकल गए । शिकार करते हुए उन्हें एक सूअर दिखाई दिया। उसका पीछा करते-करते राजा रास्ता भटक गए ।
उन्हें बहुत तेज भूख प्यास लगने लगी । कुछ दूर चलने के बाद उन्हें एक कुटिया दिखाई दी वह पर उन्होंने पुकार लगायी और पानी के लिए आग्रह किया । कुटिया से मुनि निकले और वो भानुप्रताप को पहचान गए लेकिन भानुप्रताप उन्हें नहीं पहचान पाए । वो मुनि कोई साधु सन्यासी नहीं था वो राजा भानुप्रताप के द्वारा युद्ध में हराया हुआ एक राजा था।
मुनि का षड़यंत्र
भानुप्रताप और मुनि ने बहुत देर तक बातें की जिससे राजा उनकी बातें सुनकर बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने मुनि से विश्वविजयी बनने के लिए उपाय पूछने लगे ।
जो राजा हारा हुआ हो भले ही उसके बाहरी घाव सूख गए हों लेकिन अंदर ही अंदर उसके घाव हरे भरे रहते हैं।
यही वो मौका था, मुनि बने राजा के पास अपना बदला लेने का । उसके मन में एक तरकीब सूझी और उसने राजा को कहा कि एक उपाय है । तुम दस हज़ार ब्राह्मणों को भोजन करवाओ और अगर मै रसोई बनाऊं और तुम परोसो तो तुम्हे विश्वविजयी बनने से कोई रोक नहीं सकता।
राजा भानुप्रताप को श्राप
इस कार्यक्रम का समय निश्चित हो गया और भानुप्रताप वहां से चले गए । जब वो दिन आया तो मुनि ने अपनी जगह कालकेतु राक्षस को अपने वेश में भेज दिया ।
दस हजार ब्राह्मणो को निमंत्रण दे दिया गया और कालकेतु राक्षस ने भोजन बनाया और उसमे मांस मिला दिया । जब भोजन ब्राह्मणो के सामने परोसा गया तब आकाश से एक आकाशवाणी हुयी की इस भोजन में मांस मिला हुआ है ।
तब सभी ब्राह्मण क्रोधित हो गए और उन्होंने राजा भानुप्रताप को ये श्राप दिया की अगले जन्म में तुम पूरे परिवार सहित राक्षस बनोगे । राजा ने बहुत समझाया की उसने मांस नहीं मिलाया है लेकिन ब्राह्मणो ने एक न सुनी और वो बिना भोजन किये निकल गए ।
अंत में जब राजा की मृत्यु हुयी तो वही राजा भानुप्रताप अगले जन्म में रावण बना और उसका भाई अरिमर्दन कुम्भकरण और सौतेला भाई धरमरुचि विभीषण बना।