Mahamrityunjay Mantra (महामृत्युंजय मंत्र )
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् |
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ||
महामृत्युंजय मंत्र का अर्थ हिंदी में
हम उन त्रिनेत्र (तीन नेत्र वाले मतलब शिव शंकर ) को पूजते हैं जो हमारा पालन पोषण करते है जैसे कोई फल शाखा के बंधन से मुक्त हो जाता है वैसे ही हम भी इस संसार रुपी बंधन से मुक्त हो जाए , हम भी मृत्यु और नश्वरता से मुक्त हो जाए ।
महामृत्युंजय की शुरुवात कैसे हुयी?
महामृत्युंजय की शुरुवात कैसे हुई कुछ शास्त्रों में ऐसा वर्णित है कि एक मृकण्ड नामक ऋषि थे जो भोलेनाथ के बहुत बड़े भक्त थे । उनके कोई भी संतान नहीं थी। वो जानते थे कि अगर देवो के देव महादेव उनके ऊपर प्रसन्न हो जाए तो उन्हें संतान कि प्राप्ति अवश्य होगी । यही मन में विचार कर उन्होंने शिव – शंकर की घोर तपस्या की और भोलेनाथ को प्रसन्न किया तब मृकण्ड ऋषि ने पुत्र की कामना की और भोलेनाथ ने आशीर्वाद दिया और ये भी चेतावनी दी की सुख के साथ- साथ दुःख भी होगा। मृकण्ड ऋषि ने फिर भी उनकी बात को स्वीकार किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुयी ।
मृकण्ड ऋषि ने अपने पुत्र का नाम मार्कण्डेय नाम रखा । जब मार्कण्डेय को पंडितो और ऋषियों को दिखाया गया तो उन्होंने बताया की इसकी तो अल्प आयु है और इसकी उम्र की अवधी सिर्फ 12 वर्ष है ।यह जानकार मृकण्ड ऋषि बहुत दुखित हुए लेकिन उन्होंने धैर्य रखते हुए अपने पत्नी को समझाते हुए बोले की अगर भोलेनाथ ने वरदान दिया है तो वो रक्षा भी करेंगे । मार्कण्डेय ऋषि की माता ने दुखी होकर के बता दिया की तुम अल्पायु हो । तब मार्कण्डेय ऋषि ने अपने मन ही मन में प्रण कर लिया की वो अपने माता पिता की ख़ुशी के लिए भोलेनाथ से दीर्घायु होने का वरदान प्राप्त करेंगे ।इसके बाद उन्होंने एक मंत्र की रचना की और शिव मंदिर में बैठकर इस मंत्र का पाठ करने लगे वो मंत्र है —
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् |उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ||
ऐसा माना जाता है की जब यमदूत बालक को लेने आये तो वो मृत्युंजय का पाठ कर रहे थे तो यमदूत उनके पास जाने का साहस नहीं कर पाए और वापस लौट गए । जब यह बात उन्होंने यमराज को बताई तो यमराज ने कहा की वो स्वयं बालक को लेने जाएंगे ।
जब यमराज उन्हें लेने गए तो बालक शिवलिंग से लिपट गया और और तेज – तेज मृत्युंजय मंत्र का पाठ करने लगे । जब यमराज बालक को खींचने लगे तो शिवलिंग से एक बड़ी हुंकार हुयी और भोलेनाथ प्रकट हुए । भोलेनाथ ने क्रोध में आकर के कहा की तुम मेरी भक्ति में लीं व्यक्ति को नहीं ले जा सकते है । यमराज बहुत भयभीत हो गए और उन्होंने कहा की मै आपका सेवक हूँ और आपकी आज्ञा से ही सबके प्राण हारता हु और इस बालक की आयु समाप्त हो चुकी है ।
तब भोलेनाथ ने कहा की मै इस बालक को दीर्घायु होने का वरदान देता हूँ ।
तब यमराज ने कहा कि आज के बाद जो भी प्राणी महामृत्युंजय का पाठ करेगा उसे मै त्रास नहीं दूंगा ।
इस प्रकार मार्कण्डेय ऋषि ने मृत्यु पर विजय पाने वाले महामृत्युंजय मंत्र कि रचना की ।
त्र्यम्बक मंत्रो का स्वरुप
त्र्यम्बक मंत्र तीन प्रकार के हैं
- मृत्युंजय
- मृत संजीवनी
- महामृत्युंजय
मृत्युंजय
ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टि वर्धनम। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्यो र्मुक्षीय मामृतात। ॐ स्वभुर्वः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ ।।
मृत संजीवनी
ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टि वर्धनम। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्यो र्मुक्षीय मामृतात। ॐ स्वः ॐ भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ ।।
महामृत्युंजय
ॐ हौं ॐ जूं सः ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टि वर्धनम। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्यो र्मुक्षीय मामृतात। ॐ स्वः ॐ भुवः ॐ भूः ॐ सः ॐ जूं ॐ हौं ॐ ।
महामृत्युंजय मंत्र विभिन्न कार्यो के लिए अलग अलग संख्या में जप करने का विधान शास्त्रों में क्या गया है ।
- भय से छुटकारा पाने के लिए कम से कम ग्यारह सौ ।
- रोगो से मुक्ति के लिए कम से कम ग्यारह हज़ार ।
- पुत्र की प्राप्ति , उन्नति के लिए एवं अकाल मृत्यु से बचने के लिए एक लाख का जप करना चाहिए ।
अगर आप मृत्युंजय मंत्र प्रति दिन पाठ करते है तो आपके लिए बहुत ज्यादा शर्ते नहीं है लेकिन अगर आप महामृत्युंजय मंत्र का अनुष्ठान करवा रहे हैं तो कृपया इन बातो का जरूर ध्यान रखें
- मंत्रानुष्ठान प्रारम्भ करते समय भगवान् शंकर का चित्र ( उनकी शक्ति सहित ) स्थापित करें ।
- पूर्व दिशा की ओर( ईशान कोण ) मुँह करके ही जप करें ।
- शुद्ध घी का दीपक निरंतर अर्थात जप पर्यन्त प्रज्ज्वलित रहना चाहिए ।
- मंत्र का पाठ करते समय चन्दन या रुद्राक्ष की माला प्रयोग में लाएं
- एक समय भोजन ( फलाहार ) करें ।
- मंत्रो के शब्दों का उच्चारण शुद्ध व स्वर बहुत धीमा होना चाहिए
- चित्त की स्थिरता के लिए मौन रहे एवं नास्तिको से दूर रहें ।
- भूमि पर शयन करें ।
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